Radha Rani Krishna Katha, श्री राधा रानी का अवतरण

Shri Radha

Radha Rani Krishna Katha

मोहिनी अवतार

Radha Rani Krishna Katha Radha Rani Krishna Katha Radha Rani Krishna Katha

भगवान का जब मोहिनी अवतार हुआ तो मोहिनी अवतार के उस स्वरूप के सौन्दर्य पर 33 कोटि देवता न्योछावर हो गए। सब के मन में ये भाव आया ये जो भी प्रकट हुई हैं ये किसी भी प्रकार से हमको हमारी गृहनी के रूप में मिल जायें, ठाकुरजी इतने सुंदर बनके आए। चंद्रमा भी पीछे-पीछे चल रहे हैं, शंकर जी भी पीछे-पीछे चल रहे हैं, ब्रह्मा जी भी पीछे-पीछे चल रहे हैं, वरुण आदि आदि जितने भी देव हैं, सब मोहिनी पर ऐसे लट्टू हुए कि एक बार हमको देख भर लें, एक बार हम पर दृष्टि डाल लें उसी मात्र से हमारा कल्याण हो जाना है, ऐसा ठाकुरजी का स्वरूप। परंतु 33 कोटि देवताओ में एक देव ऐसे हैं जिनका मोहिनी के प्रति ऐसा कोई दुर्भाव नहीं था और वो देव थे सूर्यदेव।

सूर्यदेव का वात्सल्य भाव (Radha Rani Krishna Katha )

सूर्यदेव ने जब मोहिनी के सौंदर्य को देखा तो उनके मन में भाव आया की इतनी सुंदर, इतनी सुकुमारी, इतनी कोमल, इतनी मधुर, कि सब को तो लगे की ये हमारी पत्नी बने पर सूर्यदेव को लगे की मेरी बेटी बन जाए, मुझे पुत्री रूप में प्राप्त हो जाए। जब सूर्यदेव के हृदय में ये भावना उत्पन्न हुई तो मोहिनी ने कटाक्ष नेत्रों से सूर्यदेव की ओर देखा और किसी की तरफ देख ही नहीं रही हैं और देख कर के केवल ठाकुरजी (मोहिनी) ने केवल इशारा किया की तो आपकी ये इच्छा है। सूर्यदेव ने कहा जी भगवन, मेरी बहुत अभिलाषा है कि आप पुत्री रूप में मेरे यहाँ पधारो। ठाकुरजी बोले कि इतना साधारण नहीं है हमें प्राप्त करना। पुत्र रूप में प्राप्त करना फिर भी साधारण होगा पर पुत्री भाव में, ये तो असाधारण है इसके लिए तो आपको तप करना पड़ेगा।


सूर्यदेव का तप (Radha Rani Krishna Katha )

सूर्यदेव बोले की में आज से ही तप करुंगा पर आप वचन दो कि आप मेरे यहाँ आप पधारोगे और इसी रूप में पधारोगे। मोहिनी ने कहा यदि में तम्हारे भजन से प्रसन्न हुई यदि तुम्हारी भक्ति में, तुम्हारे प्रेम में प्रबलता हुई तो, मोहिनी तो केवल 33 कोटि देवताओ को मोहित करती है पर तुम्हारे भजन के प्रभाव से में तुम्हारे यहाँ अवतरित हुई तो मोहिनी को भी मोहित करने वाला रूप धारण करके आउंगी। मोहिनी, जिसने तीन लोकों को अपने रूप पर न्योछावर कर दिया वो मोहिनी भी उस रूप को देखकर मोहित हो जाए वो रूप आएगा आपके यहां। वही सूर्यदेव वृषभानु जी के रूप में प्रकट हुए और जब वृषभानु जी के रूप में प्रकट हुए तो उससे पहले राजा के रूप में भी आये थे तब भी इन्हों तपस्या की थी पर ठाकुरजी नहीं आए थे। जब वृषभानु जी के रूप में आए तब उन्होंने ठाकुरजी का यजन करना बंद कर दिया, और ब्रह्मा जी का यजन प्रारंभ कर दिया, ब्रह्मा जी से प्रार्थना की, ब्रह्मा जी प्रकट हुए और बोले क्या वरदान चाहिए। वृषभानु बोले की वरदान आपसे नहीं चाहिए, वरदान किसी और से चाहिए, किसी ने हम से कहा था कि वो हमारे यहां पुत्री रूप धारण कर आएंगे पर मुझे लग रहा है कि कहीं वो भूल तो नहीं गए हैं इसलिए ब्रह्मा जी आप बहुत करीब हो ठाकुरजी के तो आप उनसे कहिये की कोई बैठा है आपकी आस में।

ब्रषभानु जी की ब्रह्मा जी से बिनती (Radha Rani Krishna Katha )
Shri Radha Krishna Katha
Shri Radha Krishna Katha

जब से मोहिनी रूप को देखा है तब से हम पागल हुए फिर रहे हैं। 33 कोटि देवताओ के मन में भी यही है कि कब प्रगट होंगी दोबारा, कृपा करो आप प्रार्थना करो की वो पधारें। ब्रह्मा जी बोले कि आपके भजन में इतनी सामर्थ्य है कि ठाकुरजी ना नहीं कर सकते। तो वृषभानु जी बोले की विश्वास के लिए मुझसे कुछ तो कहकर जाइए, ब्रह्मा जी बोले की मेरी जिम्मेदारी बन जाये इसलिए चलो इस पर्वत के रूप में में विराज जाता हूँ


ब्रह्मा जी का पर्वत रूप में स्थापित होना (Radha Rani Krishna Katha )

ठाकुरजी आयंगे, में जिम्मेदारी लेता हूं इसलिए में ही पर्वत बनकर बैठा हूं। और बरसाना पर्वत के रूप में ब्रह्मा जी विराज गये। ब्रह्मा जी ने जाकर अनुरोध किया तो ठाकुरजी बोले में तो भूल ही गया था कि मुझे जाना है। ब्रह्मा जी बोले भगवान वो बहुत प्रतीक्षा कर रहे हैं आपकी। ( जब ठाकुरजी ने मोहिनी रूप धारण किया तब 33 कोटि देवताओं के मन में वात्सल्य भाव नहीं आया था कुछ और ही भाव था। ) वृषभानु जी का भजन कैसा, बताया की वृषभानु जी की एक ही इच्छा है कि ठाकुरजी का जो पुत्री रूप मेरे पास आए, उसमें ऐसी पुत्री चाहता हूं जिसको देखकर काम नष्ट हो जाए, काम का भी मर्दन हो जाए। सामने वाले के मन में दिव्य, निष्काम, निश्वार्थ प्रेम प्रगट हो।

निश्वार्थ प्रेम किसे कहते हैं, इसका प्रसाद पूरी दुनिया को देने वाली ऐसी पुत्री मेरे घर पधारें। स्वार्थ सिद्ध सब करना जानते हैं लेकिन निस्वार्थ प्रेम किसे कहते हैं वो ठाकुरजी का शक्ति स्वरूप ही सबको बता सकता है। ब्रह्मा जी की प्रार्थना हुई ठाकुर जी से, ठाकुरजी अपने बैकुंठ में विचार कर रहे हैं, विचार कर रहे हैं, कैसे करूं, नंद-यशोदा के यहाँ भी जाना है देवकी-वासुदेव के यहाँ भी पुत्र बनना है, पहले से ही चार माता-पिता हैं हमारे, ये दो माता-पिता और कैसे बनाऊं।

श्री कृष्ण जी का प्रतिबिम्ब (Radha Rani Krishna Katha )

जब ठाकुरजी विचार कर रहे थे तब एक खंब में लगी मणि और उस मणि में ठाकुरजी ने अपना प्रतिबिम्ब देखा, ठाकुरजी अपना प्रतिबिम्ब नहीं देखते, बहुत कम देखते हैं, तब श्रृंगार आरती होती है लाल जी की तब इन्हें प्रतिबिम्ब दिखाते हैं और उस प्रतिबिम्ब में भी इतना इतराते हैं महाराज, उसमें भी स्वयं को देखकर खुश हो जाते हैं “वाह में कितनो प्यारो लग रहो हूँ”। अपना प्रतिबिम्ब ठाकुरजी इसलिए नहीं देखते क्योंकि ठाकुरजी स्वयं मोहित हो जाते हैं खुद ही पर। जैसे ही ठाकुरजी ने स्वयं का प्रतिबिम्ब देखा और आगे बड़े लेकिन ठाकुरजी मन में विचार करने लगे कि मुझे सब के सब भाव प्रिय हैं लेकिन अपना ये देखू तो मुझे ये अपना प्रतिबिम्ब बहुत प्रिय है जब स्वयं को देखता हूं प्रतिबिम्ब में तो ऐसा लगता है मानो जो सबको मोहित कर रहा है वो स्वयं को जब देखे तो खुद भी मोहित हो रहा है, क्योंकि प्रतिबिम्ब कभी झूठ नहीं बोलता, प्रतिबिम्ब का ये स्वभाव है जैसे आप हो हमको वैसा ही दिखाता है ।

प्रतिबिम्ब स्वरूप का श्रृंगार (Radha Rani Krishna Katha )

ठाकुरजी ने जैसे ही स्वयं का प्रतिबिम्ब देखा ठाकुरजी ने अपने प्रतिबिम्ब को वहीं स्थिर कर दिया और श्री लक्ष्मी जी के श्रृंगार की पूरी पेटिका लेकर आए और अपने प्रतिबिम्ब स्वरूप को ही सजाना प्रारम्भ किया, मोर पंख हटाया, मुकुट हटाया, घुंघराले बालों को खोल दिया, आंखों में पतला-पतला काजल लगाया, माथे पर बिंदी लगाई और होठों पर निर्मल लालिमा लगाई और सर्वांगन (पूरा) श्रृंगार किया, लक्ष्मी जी की चुनरी सिर पर उढ़ायी और जो श्याम रंग है उसको जैसे ही गौर वर्ण किया वैसे ही वैकुंठ के उस प्रतिबिम्ब में से मानो जैसे करोडो सूर्य-चन्द्र का एकाकार रूप प्रकट हो गया हो इतना तेजपुंज प्रकट हो गया कि ठाकुरजी भी अपने नेत्रों को छुपाने लगे।

किशोरी जी का प्रथम प्राकट्य (Radha Rani Krishna Katha )

थोड़ी देर बाद ठाकुरजी ने जैसे ही अपने नेत्रों को धीरे से खोला और अपने प्रतिबिम्ब की ओर देखा तो वहां किशोरी जी का दिव्य स्वरूप प्रकट हो गया। ठाकुर जी ने किशोरी जी को पहले दंडवत किया “प्रणाम”, किशोरी जी बोली हे श्यामसुंदर आपने ही मुझे प्रकट किया है आपने ही मुझे बनाया है बताओ क्या भाव है मन में। ठाकुरजी बोले बस इतना भाव है जब मेरे मोहिनी रूप ने 33 कोटि देवताओं को मोहित किया था पर में मोहित नहीं हो पाया, मैं भी तड़प रहा था कि कोई मुझे भी मोहित करे तो मन में इच्छा थी कि कोई ऐसा स्वरूप प्रकट हो जो मुझे भी मोहित कर सके, जो मोहिनी को, ना सिर्फ मोहिनी को बल्कि अनंत मोहिनियों को मोहित करे ऐसा दिव्य रूप प्रकट हुआ है आज।

किशोरी जी का बृषभानु जी के यहाँ जन्म

धर्म की स्थापना हुई, ज्ञान की स्थापना हुई, भक्ति की स्थापना हुई, वैराग्य की स्थापना हुई लेकिन प्रेम, जो इस संसार का सार है उस प्रेम की स्थापना नहीं हुई
इसलिए आपका अवतार आवश्यक है, आप मेरी शक्ति हैं, आप मेरी आत्मा हैं।

पूरा विश्व और संपूर्ण विश्व की दिव्य चेतना किसकी प्राप्ति के लिए दौड़ रही है कि आत्मा परमात्मा से मिल जाए और जो परमात्मा की जो आत्मा है वही तो किशोरी जी हैं। लोग उनके रूप को नहीं समझ पाते हैं। पर किशोरी जी ठाकुरजी का प्रतिबिम्ब स्वरूप है और राधा और कृष्ण में कोई भेद नहीं है

ठाकुरजी ने किशोरी से विनती की कि आप सूर्य के ही अवतार ब्रषभानु जी के यहां प्रेम की स्थापना के लिए अवतार लो तब किशोरी जी ने श्री ब्रषभानु और कीर्ति जी के यहां जन्म लिया।

By Apkiduniya

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